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नंगा बच्चा
जब
कुछ नहीं था
तब
आते थे सैलाब,
अटक फैल बिखर जाता था
पन्ने के ठीक बीच
बाँहों के पैर पसारे
कागज़ पर, कलम के वजूद से बकार
बिखरा अनगढ़ अबाध,
मैं हूँ का अहंकार
आज वो है
अंत की शांति, आदि के आभास
के मध्याह्न,
सैलाब के नीचे के भीगे कागज़ में लिपटा,
झुरझुरी लेता
नंगा बच्चा, बिना कपड़े
हाशिये की ऊँगली पकड़े
स्थिर
निडर, थोडा डरा
अधपल्टा, अधस्थित
उन्ही लहरों को निहारता
अटक फैल पर अनिच्य
पन्ना अब बिलकुल खाली है,
धुला धुला सा
साफ़,
उफनते पानियों के अक्स
खुली आँखों पर छाया छोड़ते हैं,
बढ़ जाते हैं
नंगा बच्चा, बिना कपडे
खाली आँखों से
दुनिया छोड़ देता है
कलम वजूद है?
वजूद कलम?
अटक फैल
बिखरा अनगढ़ अबाध,
अब भी पन्ने को सरसरा के टटोलता है
मैं हूँ भी कि नहीं
का अचकचाया अहंकार
सैलाब की बची
अधबाकी लहरें
अब भी
गुदगुदाती हैं उसके पैर,
नंगा बच्चा, बिना कपड़े
खाली आँखों के सैलाब में
फिर, फिर नहाता है,
हाशिये की झुरझुराती उंगली छोड़ देता है
कुछ नहीं लिखता.
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